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सद॑स्य॒ मदे॒ सद्व॑स्य पी॒ताविन्द्रः॒ सद॑स्य स॒ख्ये च॑कार। रणा॑ वा॒ ये नि॒षदि॒ सत्ते अ॑स्य पु॒रा वि॑विद्रे॒ सदु॒ नूत॑नासः ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sad asya made sad v asya pītāv indraḥ sad asya sakhye cakāra | raṇā vā ye niṣadi sat te asya purā vividre sad u nūtanāsaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सत्। अ॒स्य॒। मदे॑। सत्। ऊँ॒ इति॑। अ॒स्य॒। पी॒तौ। इन्द्रः॑। सत्। अ॒स्य॒। स॒ख्ये। च॒का॒र॒। रणाः॑। वा॒। ये। नि॒ऽसदि॑। सत्। ते। अ॒स्य॒। पु॒रा। वि॒वि॒द्रे॒। सत्। ऊँ॒ इति॑। नूत॑नासः ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:27» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:23» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:3» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब किस किस द्रव्य का सेवन करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जिज्ञासु जनो ! (इन्द्रः) पूर्ण विद्यावला वैद्य (अस्य) इस सोमलता आदि बड़ी ओषधि समूह के (मदे) आनन्द में (सत्) प्रमाद से रहित सत्य ज्ञान (चकार) करे और (अस्य) इसके (पीतौ) पान करने में (सत्) प्रमाद से रहित सत्य ज्ञान को (उ) भी करे और (अस्य) इसके (सख्ये) मित्रपने में (सत्) प्रमादरहित सत्य ज्ञान को करे (ये, वा) अथवा जो (निषदि) बैठते हैं जिसमें उस गृह अर्थात् बैठक में (रणाः) रमते हुए(अस्य) इसके (सत्) प्रमादरहित सत्य ज्ञान को (विविद्रे) प्राप्त होते हैं (ते) वे (पुरा) पहिले (नूतनासः) नवीन जन (सत्) प्रमादरहित सत्य ज्ञान को (उ) ही प्राप्त होते हैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य लोग मादक द्रव्य के सेवन का त्याग करके सर्वदा बुद्धि, बल, आयु और पराक्रम के बढ़ानेवालों का सेवन करें, जिससे सदा ही सुख बढ़े ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ किं किं द्रव्यं सेवनीयमित्याह ॥

अन्वय:

हे जिज्ञासवः ! इन्द्रोऽस्य मदे सच्चकार। अस्य पीतौ सदु चकार। अस्य सख्ये सच्चकार। ये वा निषदि रणाः सन्तोऽस्य सद्विविद्रे ते पुरा नूतनासः सदु विविद्रे ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सत्) प्रमादरहितं सत्यं ज्ञानम् (अस्य) सोमलतादिमहौषधिगणस्य (मदे) आनन्दे (सत्) यथार्थम् (उ) (अस्य) (पीतौ) पाने (इन्द्रः) पूर्णविद्यो वैद्यः (सत्) (अस्य) (सख्ये) (चकार) (रणाः) रममाणाः (वा) (ये) (निषदि) निषीदन्ति यस्मिंस्तस्मिन् गृहे (सत्) (ते) (अस्य) (पुरा) (विविद्रे) लभन्ते (सत्) (उ) (नूतनासः) ॥२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्मादकद्रव्यसेवनं विहाय सर्वदा बुद्धिबलायुःपराक्रमवर्धकानि सेव्यन्तां येन सदैव सुखं वर्द्धेत ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी मादक द्रव्याचा त्याग करून सदैव बुद्धी, बल, आयु व पराक्रम वाढविणाऱ्या पदार्थांचे ग्रहण करावे, ज्यामुळे सदैव सुख वाढते. ॥ २ ॥